Written by D. K. Vasal — वासल देवेन्द्र
(पानी)
हिंदी में जल, संस्कृत में पानी,
है मेरा प्रणाम उसको।
रखा जिसने पानी का,
नाम पानी।
पा से पावन ,नी से नीरद ,( जल देने वाला मेघ )
है बिना गंध पारदर्शी पानी।
रखता नही कोई रंग पानी,
क्या सच में है बेरंग पानी।
मैं नही मानता ये कहानी,
पूछो देशभक्तों से,
क्या होता है काला पानी।
हंसता है वासल देवेन्द्र,
देख इन्सानों की नाकामी,
करनी थी सराहना देश भक्तों की।
कर दिया बदनाम पानी।
ना जाने किसने भ्रम फैलाया,
मछली जल की है रानी।
भोली भाली नाज़ुक है वो,
ज़रूरत है, उसकी पानी।
बचपन से सुनता आया हूं,
जीवन है उसका पानी।
बस मछली को बदनाम कीया,
हर जीव की जान,
है पानी।
सूख जाती है धरती सारी,
जो ना बरसे बरसात का पानी।
बह जाते हैं गांव सारे,
अगर ज़ोर से बरसे पानी।
रखना है खुद को जिंदा तो
चाहिए हम सब को पानी,
रखनी है लाज अपनी तो,
फिर चाहिए सोने का पानी।
मर जाते हैं रिश्ते भी,
मर जाये अगर आंख का पानी।
कहां बांटा दर्द किसी का,
जो ना आया आंख में पानी।
बिना “प” संगीत नही,
” नी” स्वरों की है रानी।
पाणिग्रहण से शुरू होती है,
हर गृहस्थी की कहानी।
अंतिम स्वर भी ये पुकारें
है कहां गंगा का पानी,
अस्थियों की भी है पुकार
हो गंगा- यमुना का पानी।
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
है ज़रुरी हम को सब को पानी।
चलो खांये कसम , सब मिल कर,
रखेंगे ,…बचा कर पानी।
बचना है अगर होने से,
भविष्य में पानी-पानी।
***
जीवन की विभिन्न स्थितियों, परिस्थितियों में ‘पानी’ शब्द के व्यापक मुहावरेदार उपयोग और किसी भी जीव के जीवन के लिए पानी की अनिवार्यता को बखानती एक उत्तम कविता!
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👍 beautiful poem.
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Superb poem, keep it up
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