Written by D.k. Vasal -वासल देवेन्द्र
( मैं वही हूं, वही हूं, वही )
मैं कौन हूं ?
रिश्ता नाम ,कोई भी हो,
मैं वही हूं, वही हूं, वही।
किसी का पुत्र ,और पिता किसी का।
किसी का मित्र ,और भाई किसी का,
तुम पुकारो मुझे ,किसी रिश्ते यां नाम से,
मैं वही हूं, वही हूं, वही।
तुम दो गाली ,पिता को, पुत्र को,
मित्र को ,यां भाई को।
पर मत ,भूलो,
मैं वही हूं वही हूं वही।
कोई देता है गाली ,गौतम को,
है कोसता कोई ,कृष्ण को।
कोई देता दोष ,मोहम्मद को,
है कहता बुरा ,कोई ईसा को।
क्यों भूल जाता ,ये मूर्ख इन्सान?
मैं वही,वही हूं, वही हूं।
कोसते हो ,दिन रात मुझे,
मेरे ही नाम से,
पुछते हो फिर ,मैं नाराज़ क्यों हूं।
ज़रा सोचो……
गौतम को दी गाली ,भी मोहम्मद को लगती है,
ईसा की फांसी भी ,कृष्ण को लगती है।
कहता है वासल देवेन्द्र ये
ऐ मूर्ख इन्सान। ,जाग ज़रा,
क्यों श्राप ,खुद को देता है।
किस भ्रम में ,तू जीता है,
मैं तेरे भीतर ,रहता हूं,
रिश्ता नाम कोई ,भी हो,
मैं वही हूं, वही हूं, वही हूं।
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Very apt in today’s situation where religions are clashing with each other.
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Jai Shri Krishna
Very good n true poem in today’s scenario.
In nutt shell- GOD IS ONE.
Keep it up
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Thank you
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Very very nice.
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🙏
सभी देहधारी जीवों में निवास करनेवाला अजन्मा, अनंत, शाश्वत, सनातन ईश्वर — “एकोहम् द्वितीयो नास्ति” को सरल और सुगम शब्दों में समझाने का सफल प्रयास सराहनीय है।
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Thank you
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Very powerful, very appropriate for the current times….
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Thank you
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