Written by D K Vasal – वासल देवेन्द्र
( मां का कंधा )
आज बहुत याद ,आ रही है,
मुझे मेरी मां की।
यूं तो हरा भरा ,भरपूर है मेरा घर,
सिर्फ बच्चे ही नही ,हैं बच्चों के बच्चे भी मेरे घर।
नां जाने फिर ,भी क्यों,
लगता है मन ,खाली खाली सा।
बहुत खोजा ,हर रिश्ता खोदा,
पर ना मिला कोई ,मेरी माई सा।
कह नहीं सकता ,पर लगता है,
वासल देवेन्द्र को।
लगता होगा ऐसा ही ,हर किसी को।
सोचता हूं कभी ,कह दूं खुदा से,
रहे ना रहे कोई ,तेरे जहां में,
पर है रहना ज़रूरी ,हर मां का।
जब बच्चा था ,लगे चोट,
तो जा पकड़ता था ,मां का कंधा।
हुआ बड़ा ,दर्द बढ़ा,
तो भी था ,मां का कंधा,
अब परिवार में ,ढूंढता है,
हर कोई ,कोई न कोई कंधा।
और आ कर ,पकड़ता है,
मुझ खुशनसीब ,का कंधा।
वो समझते हैं ,मैं बहुत मजबूत हूं,,
पर मैं ढूंढता ,रहता हूं,
मेरी मां का कंधा।
नां जाने ,क्या खाती है,
हर किसी की मां।
कभी नही थकता ,किसी मां का कंधा।,
ऐ ख़ुदा है कसम ,तुझे तेरी मां की,
नां छिनना ,किसी से कभी,
उसकी ,मां का कंधा।
है तूं सच में ,अगर खुदा,
लौटा दे ,ख़ैरात में मुझे,
मेरी मां का कंधा।
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** GO DOWN FOR OTHER POEMS.
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Not only importance of mother but importance of parents in life
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Very good poem describing everlasting love and support of mother in every child’s life.
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माँ की महिमा को बखानती, वासल जी की यह कविता सराहनीय है। अपने अबोध बचपन को याद कर कौन इसको नक़ार सकता है की माँ का कंधा उसकी संतान को जितनी मज़बूत सुरक्षा कवच का अहसास कराता है, वह अतुलनीय है
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