WRITTEN BY D. K. VASAL — वासल देवेन्द्र ( मोक्ष )
कहा किसी ने मुझसे,
कहो कवि कुछ ऐसा।
हो बात कल्याण की,
हो संदर्भ मोक्ष का।
अहो भाग्य मेरे,
नाम आया याद ,
फिर हरि का।
है मोक्ष नही ये प्रश्न सरल,
लगता है समय बतलाने में।
भगवान को भी लगा समय,
अर्जुन को समझाने में।
मैं हूं एक अदना सा कवि,
क्या लिखे मोक्ष पे ,कलम मेरी।
लिख पाऊं अगर दो शब्द भी,
होगी हरी की कृपा बड़ी।
आया जब तक ना समझ,
अर्जुन की व्याकुलता बड़ी।
है मोक्ष नही प्रश्न केवल,
है अदभुत रहस्य जीवन का।
गीता में ही है छिपा,
भेद इसके मिलने का।
“मो” से मोह, “क्ष” से नाश,
हो नाश मोह का,है अर्थ इसका।
बस इतना समझना है हमको,
हो कैसे नाश ,अब इस मोह का।
है यही सार बस यही सार,
है मोक्ष सार बस गीता का।
गीता नही कोई धर्म ग्रन्थ,
है उत्तम तरीका जीने का।
नही आता शब्द गीता में,
एक बार भी हिन्दू होने का।
करो ज्ञान योग यां, कर्म योग,
करो भक्ति योग, यां ध्यान योग।
तुम त्यागो ,सब का फल ओर भोग,
खुल जायेगा द्वार मोक्ष का।
है यही एक संदेश मात्र,
एक मात्र तरीका जीने का।
जब रूकेगा आत्मा का आवागमन,
तब होगा परमात्मा से मिलन।
हो जायेंगे एक दोनों हम,
मिट जायेगा तब, सारा भ्रम।
नही भटकेगी फिर आत्मा,
हो कर इतनी अधीर।
थम जायेगा सिलसिला,
मिलने का नया शरीर।
समझाता है ये योगशास्त्र ( गीता),
दोहराता है वासल देवेन्द्र।
ले लो अब ये सीख।
छोड़ा अगर परमात्मा,
तुमने जो एक बार।
मिलेगा तुम को गर्भ नया,
रह रह के बार बार।
छुटेगा फिर ना मोह तुम्हारा,
ना होगा मोह का नाश।
ना हरि मिलेगा फिर तुम्हें,
ना फिर मिलेगा मोक्ष।
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Beautiful and profound.
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Very Nice 💐💐💐👌
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Thanks Vasal Sir for enlighting us with the true meaning of “MOKSHA” and importance of Bhagvad Gita.
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Superb. Now you are a matured poet
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Thank you
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Very nice heart touching
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सरल और सुगम शब्दों में, विद्वान कवि वासल जी द्वारा रचित यह कविता, हम जैसे साधारण मनुष्य को प्रभावशाली ढंग से समझाने में सफल है
कि निष्काम और सर्वव्यापी ईश्वर के प्रति समपर्ण भाव से किया गया कर्म, बंधन उत्पन्न नहीं करता और बंधनमुक्त होना ही मोक्ष है।
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