बांसुरी
WRITTEN BY D. K. VASAL
( बांसुरी )
इक टुकड़ा है बांस का,
हैं बस छेद ही छेद।
कहां समझ पाया कोई,
हर छेद में कितने भेद।
“स” लगाओ कहीं से,
कहीं से लगाओ “प”।
यकीनन राग बजेगा,
करो ना कोई संदेह।
इक टुकड़ा था बांस का,
था ना कोई नाम।
हरि ने उठाया हाथ में,
बांस हुआ हैरान।
करे छेद कुछ हरि ने,
दे दिया बांसुरी नाम।
हर सुर निकले हर छेद से,
दे दिया ये वरदान।
लगाया हरि ने जब होंठों से,
मां सरस्वती को हुआ ज्ञान।
आकर बैठी हर सुर में,
टूटा सब का ध्यान।
ॠषि , मुनि और हर ज्ञानी,
मनुष्य पक्षी और हर प्राणी।
सुनें सांस को रोक सब,
बांसुरी बोले हरि की बानी।
देख बांस की कहानी,
भर आया आंख में पानी।
सोचा वासल देवेन्द्र ने,
ये देह तो है आनी जानी।
बनाता अगर मुझे बांस तो,
क्या होती हरि की हानी।
लगता हरि के होंठों से
गाता हरि की बानी।
मैं मनुष्य होकर भी कुछ नही।
वो बांस होकर भी सब कुछ है
शायद इसी का नाम प्रारब्ध है
शायद यही हरि की इच्छा है।
है लीला ये सब हरि की
ये हरि की ही सब इच्छा है।
फिर आया विचार मेरे मन में,
हरि तो हैं कृष्ण भगवान,
बनाया नही मुझको बांस।
कुछ सोच बनाया मुझे इन्सान,
भेजा देकर बस ये ज्ञान।
लो हर सांस में उनका नाम,
है हरि से बड़ा हरि का नाम।
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** GO DOWN FOR OTHER POEMS.
Beautifully written 👌
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Thank you
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Good one sir…..Keep it up…..
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Love the way such beautiful thoughts and words flow from yr pen 👍👌
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I agree with neha,
One of the finest poems
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Thank you
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🙏
भक्ति-भावना से ओत-प्रोत, भगवान श्री कृष्ण को समर्पित, एक सुंदर कविता!
अन्यत्र व्यक्त, कवि के शब्दों में, इसमें अंतर्निहित अनुकरणीय जन-कल्याणकारी संदेश, इस प्रकार है —
“ एक फूंक छोड़ो तो दूसरी सांस बन के आती है।
ये ही हमें बांसुरी सिखाती है।
छोड़ो खुद को तो खुदाई पास आती है।”
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Thank you
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Deep,soul- stirring
Beautifully penned
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This is one of your best poems so far. Excellent! Must read 👌👌👏👏🙏
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