प्रारब्ध यां दो हाथ
Written by D.K.Vasal-वासल देवेन्द्र
प्रारब्ध यां दो हाथ
वक्त ने दिया जो साथ हमेशां,
ना आयेगा कोई तज़ुर्बा हाथ।
ज़रुरत पड़ी अचानक जब,
रह जाओगे मलते हाथ।
हैं लकीरें किस्मत की सबके हाथ,
है संवारना उनको अपने हाथ।
है मेहनत करना अपने हाथ,
नां रहो बैठे रख हाथ पर हाथ।
छोड़ा अगर किस्मत ने साथ,
तज़ुर्बा तुम्हारा देगा साथ।
हैं किस्मत के भी पहलू दो,
एक वक्त हमारा – एक हाथ ये दो।
है किस्मत हमेशां एक पहेली,
पर हैं काबू में हाथ ये दो।
हैं बदल सकते ये वक्त तुम्हारा,
तुम किस्मत अपने हाथों में दो।
है छीन सकता वक्त तुमसे,
जो मिला किस्मत के साथ
कर्म खड़ा है सामने उसके,
करने को फिर दो दो हाथ।
सिखाता है हमें कर्म हमेशां,
है किस्मत हमारी अपने हाथ।
कहता है वासल देवेन्द्र ये बात,
ना रहो बैठे रख हाथ पर हाथ।
सूरज करता मेहनत दिन रात,
देने को हमें दिन और रात।
रोज़ होती चंदा की मुंह दिखाई,
हों दोनों जैसे सृष्टि के हाथ।
नही रुकती धरती मां हमारी,
हैं चलती रहती दिन और रात।
देने को सूरज चंदा का साथ,
ले एक दूजे का हाथ में हाथ।
हैं मेहनत करते सब साथ साथ,
रहते ख़ामोश नही करते बात।
सह कर, चल कर, जला कर खुद को,
हैं सिखाते हमको ये बात,
तुम बना सकते हो प्रारब्ध अपनी,
ना रहो बैठे रख हाथ पर हाथ।
तजुर्बा भी आयेगा हाथ,
तुम करो वक्त से दो दो हाथ।
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“God helps those who help themselves “ के संदेश को अपनी कविता में पिरो कर, कवि ने प्रारब्ध के ऊपर कर्म की प्रधानता को स्थापित करते हुए हमें प्रतिकूल परिस्थितियों और विषम समय में भी अपने कर्तव्य पथ पर निरंतर प्रयत्नशील रहने का आह्वान किया है।
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Good message advising us to depend more on Karma than on Luck.
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Very nice
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Inspiring and motivating!
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