Written by D.K.Vasal…..वासल देवेन्द्र।
कन्या की दुश्मन कन्या,
है वो घर धन्या ,जहां होती कन्या,
द्रोपदी से जानों द्रुपद को।
और जनक को जानकी से,
विवेक बड़े अहंकार घटे,
हो जिस घर में भी कन्या।
कन्या ने जनमा मर्द को,
और मर्द भी हो गया धन्य।
मां मिल गई जैसे ईश्वर,
है मां भी उसकी कन्या।
हैं सृष्टि के कुछ रंग,
जो अधूरे बिना कन्या।
ममता, मोह और प्यार का,
है दूसरा नाम कन्या।
मनुष्य हो यां कोई प्राणी,
हो जीव जंतु यां अन्य।
नही होंगी पैदा संतानें,
अगर ना रही कोई कन्या।
हां एक अचंभा है जहां में,
सोचूं जो ध्यान लगा के।
हर औरत को चाहिए बालक,
ना मांगे कन्या दुआ में।
हां समाज की है कुछ गलती,
मानता है वासल देवेन्द्र।
पर विचार कर के जो सोचो,
कन्या की दुश्मन कन्या।
कहां से लाओगे बहू,
ना होगी अगर कोई कन्या।
पर अपनी बहू ना जन्मे,
कभी भी कोई कन्या।
मां अपनी चाहिए सब को,
पर नही चाहिए कोई कन्या।
चेहरे पे आती लकीरें,
जन्में जो घर में कन्या।
है लिखा मार्कन्डेय पुराण में,
है प्रकृति भी एक कन्या।
अहंकार में भूल जाते,
भगवान की मां भी कन्या।
सहती जो सबसे ज़्यादा,
वो पृथ्वी भी है कन्या।
विवेक बड़े अहंकार घटे,
हो जिस घर में भी कन्या।
है वो घर धन्या जहां होती कन्या।
****”
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Well written and very touching.
Those blessed with a daughter are very lucky ❤ and they should thankful to GOD.
No family is complete without a daughter.
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Very nice s hearttouching for those who have daughters
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“कन्या की दुश्मन कन्या” — एक प्रशंसनीय, समसामयिक और प्रासंगिक रचना — हमारी दूषित मानसिकता पर एक झन्नाटेदार तमाचा! नारी सहित समाज से लगातार हो रही कन्या की अवहेलना और पुत्री की अपेक्षा पुत्र को जन्म देने की कामना पर कवि ने गहरी चिंता व्यक्त किया है।
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Thank you very much Devender ji.
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