कृष्ण भक्त और दर्द.. Written by..वासल देवेन्द्र..
D. K. Vasal
कृष्ण भक्त और दर्द।
भक्ति करने वाले समझ लें,
भक्ति सागर के किनारे नही।
रहें डूबने को हर पल तैयार,
इस राह में कोई सहारे नही।
ये राह है कांटों से भरी,
नही रहती यहां कोई घास हरी।
उम्मीदें रह जाती हैं धरी,
हर घड़ी होती है दर्द भरी।
मिलता है इतना दर्द इसमें,
भूल जाता हैं पाने वाला,
वो दर्द में हैं यां दर्द उसमें।
नही कर्म में रखा ईश्वर अपना,
रखा उसको क्रिया में अपनी।
हर सांस में रहता है मेरी,
जैसे ख़ून चले नस में मेरी।
ये हकीकत है मेरे जीवन की,
नां हैं अतिशयोक्ति किसी पल की।
है ईश्वर ही गवाह मेरा,
रहा हर पल उसके नाम मेरा।
खाना जाए , जल जाए यां कुछ भी जाए भीतर मेरे,
सब होता सदैव अर्पित उसको।
नां सांस आये , नां हवा जाए बिना कृष्ण नाम भीतर मेरे,
कृष्ण साथी मेरी नींद का और मेरे हर भोज का
दौडूं भागूं कुछ भी करुं कृष्ण साथी मेरी मौज का।
तड़पाता है तूं अपनों को,
ये देख लिया मैंने अब तो।
तड़पाया अपने मां बाप को,
क्या बख्शेगा तूं भक्तों को।
मीरा रोई, कुन्ती रोई,
रोये सुदामा , सूरदास प्रभु।
सीता रोई, कौशल्या रोई ,
रोये दशरथ पिता प्रभु।
अर्जुन रोया, अभिमन्यु खोया,
रोये पांडव, खो पुत्र पांच प्रभु।
राधा रोई , देवकी रोई , रोये पिता वासुदेव प्रभु।
रोये ग्वाल, रोया गोकुल, रोया वृन्दावन प्रभु।
क्या फर्क पड़ता है तुझको,
जो रोये वासल देवेन्द्र परिवार प्रभु।
छोड़ूंगा मैं भक्ति नही,
चाहे तू ले ले जान मेरी।
कृष्ण भक्त होते हैं जिद्दी,
शायद तुझे भी पता नहीं।
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Words & feelings arising from deep personal anguish. Krishna listens, but will he respond ?
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