अक्षर ढाई—2– दर्द।
हर तरहां के लिखे “अक्षर ढाई” ,
वासल देवेन्द्र ने कविता “अक्षर ढाई “में।
बस “दर्द” ही लिखना भूल गया,
हो नाराज़ वो मुझको डस गया।
है पुत्र भी ढाई अक्षर का,
और पितृ भी ढाई अक्षर का।
कब पुत्र बन गया पितृ मेरा,
मुझे ज़रा पता नही चला।
है गंगा भी ढाई अक्षर की,
और पिंड भी ढाई अक्षर का।
है ज्वाला भी ढाई अक्षर की,
और स्वाहा भी ढाई अक्षर का।
क्या होता है ज्वाला में स्वाहा,
मुझे कभी पता नहीं चला।
होते हैं पाप स्वाहा अपने,
यां होता है मोह स्वाहा अपना।
हो जाता है सब स्वाहा,
जैसे भस्म हो ढाई अक्षर का।
पुत्र छोड़ गया पुत्र अपना,
है पुत्र भी ढाई अक्षर का।
और छोड़ गया कन्या अपनी,
है कन्या भी ढाई अक्षर की।
रोती छोड़ गया पत्नी अपनी,
है पत्नी भी ढाई अक्षर की।
तोड़ गया रिश्ता अपना,
है रिश्ता भी ढाई अक्षर का।
हो गया पूरा जन्म का नष्ट,
है जन्म भी ढाई अक्षर का,
और नष्ट भी ढाई अक्षर का।
मृत्यु तुल्य मिला है कष्ट,
है मृत्यु भी ढाई अक्षर की।
है तुल्य भी ढाई अक्षर का,
और कष्ट भी ढाई अक्षर का।
अश्रु बहते जैसे वर्षा,
हैं अश्रु भी ढाई अक्षर के।
और वर्षा भी ढाई अक्षर की,
था मातृ भक्त बेटा मेरा,
है मातृ भी ढाई अक्षर की,
और भक्त भी ढाई अक्षर का।
है आंख भी ढाई अक्षर की,
और आंसू भी ढाई अक्षर का।
है ज़ख्म भी ढाई अक्षर का
और दर्द भी ढाई अक्षर का।
दर्द हर पहलू से होता है दर्द ,
पढ़ो आगे से यां पीछे से होता है दर्द।
दे दोस्त, दुश्मन यां खुदा,
दर्द हर हाल में होता है दर्द।
इससे अच्छा कोई दोस्त नही,
बेवफ़ाई का इसमें दोष नही।
खुद ही बन जाता है दवा अपनी,
किसी मलहम की इसको तलाश नही।
किसी खंजर से इसको भय नहीं,
सब दोस्त हैं इसके कोई दुश्मन नहीं।
मिलता है सबको कभी नां कभी,
बच सकता इससे कोई नहीं।
आने का इसके कोई वक्त नही,
जाने का इसके कोई वक्त नही।
है गहरा रिश्ता आंखों से,
आंसू रुकने देता नही।
हर तरहां के लिखे ढाई अक्षर,
वासल देवेन्द्र ने कविता ढाई अक्षर में।
बस दर्द ही लिखना भूल गया,
हो नाराज़ मुझे वो डस गया।
तूं दर्द है मेरे लाडले का,
रखूंगा दिल के पास तुझे।
तूं उम्मीद लेकर आया है।
पालूंगा प्यार से मैं तुझे,
तूं भी रखेगा याद मुझे,
कैसा मिला है कृष्ण भक्त तुझे।
***
Now you have reached as fully matured poet. Poem written is not only touching heart but also succeeded in bringing out the tears of father’s Pain .Worth reading again and again
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