WRITTEN BY …वासल देवेन्द्र..D.K.Vasal
( ख़ुदा की करेंसी)
आंसू जो आंख से टपका , वो पानी नही है,
है हकीकत हमारे दर्द की , कोई कहानी नही है।
आते नहीं आंसू , बेवज़ह कभी,
कोई तो है वज़ह ,जो आंख नम पड़ी।
पूछा किसी ने हमसे ,क्या गुज़री है घड़ी,
रफ़्तार आंसुओं की ,तब और थी बढ़ी।
लगता था ऐसे जैसे , बरसात की झड़ी,।
लगा कर अपने सीने से ,कहा मैंने उसकी मां से
रोको इन आंसुओं को ,हैं कीमती ये बहुत,
ना गिरायो इन्हें ज़मीन पर ,जल जाये ना जहां कहीं।
कुछ संभल कर ,कुछ रुक कर,
उनकी जुबां खुली , बोली वो सिसकियों में।
मैं कुछ नां कर सकी , यूं पलक झपकते ही,
गया बेटा…… , ख़ुदा के जहां में।
ना पूछो हमसे हमारे ,दर्द की हकीकत,
रो दोगे तुम यकीनन ,जान के असलियत।
निभाया साथ उसने ,पूरी जवानी में,
अब आया अजीब मोड़ , हमारी जिंदगानी में।
चला गया हमें छोड़ कर , रोते हैं हम सभी,
लगता है निकल जायेगा ,दम अभी के अभी।
मालूम नही हमको ,क्या था कसूर हमारा,
थी अटूट मौहब्बत ,यां मोह का अंधेरा।
कहे उसकी मां को ,प्यार से ये बोल,
मत करो खर्च आंसू ,इस नशवर जहां में तुम।
रखो बचा के इनको ,हैं ये बहुत अनमोल,
आयेंगे काम तुम्हारे ,जब मिलोगी खुदा से तुम।
किसी धन दौलत ,यां शोहरत की,
नहीं अहमियत ,वहां।
शाय़द ये ,अनमोल मोती,
कर दें कुछ ,कमाल वहां।
चलती है वही करेंसी ,उसके जहां में,
बहती है बनके आंसू ,जो करुणा के भाव में।
हैं पारर्दशक जो ,पानी की तरहां,
होती है स्वाद जो ,सागर की तरहां।
इतिहास है गवाह ,इसकी काबिलियत का,
हो कृष्ण का दौड़ना ,द्रोपदी के लिए।
यां आंसू देवकी के ,गुज़रे बच्चों के लिए,
यां नानकी के आंसू ,भाई नानक के लिए।
कहां समझ पाते हैं हम ,इस जहां में,
हर आंसू भिगोता है ,दामन खुदा का।
उस जहां में।
रोते हुए समझाया ,पिता वासल देवेन्द्र ने,
अधमरी, बिलखती ,तड़पती हुई मां को।
नां बहायो तुम आंसू ,अब गिरीश के लिए,
ये पेशकीमती तोफा ,रखो खुदा के लिए।
बदल दी जिसने ,तकदीर हमारी
बस एक ,घाव में,
देना उसको बदले में ,दिये दर्द के लिए।
चलती है वही करेंसी ,ख़ुदा के जहां में
बहती है बन के आंसू ,जो करुणा के भाव में
******