नहीं! नहीं! अर्जुन नहीं समझ पाया गीता को।.
Written by..वासल देवेन्द्र..D.K. Vasal.
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यदि मैं साबित नां कर पाया,
कि अर्जुन नहीं समझ पाया गीता को।
तो काट देना तुम गर्दन मेरी,
सोच ये नीच कंहा से आया।
यदि कर दिया साबित मैंने,
कि अर्जुन नहीं समझ पाया गीता को।
तो कृपा करके नां देना ज्ञान उसको,
खोया जिसने जवान बेटा उसको।
छोड़ कर अपना धनुष बाण,
बोला फिर अर्जुन कृष्ण से,
मैं नहीं लडूंगा हे गोविंद।
समझाया बहुत तब कृष्ण ने,
छोड़ो अर्जुन तुम ये मोह माया।
ये अपने परायों का बंधन,
नही मरती आत्मा कभी।
जो रहती है सब के अन्दर।
क्या सच में समझ गया अर्जुन?
जो हो गया तैयार फिर लड़ने को।
नहीं मानता वासल देवेन्द्र ये,
करता हूं कोशिश समझाने को।
बोला अर्जुन हे केशव,
मैं नहीं मारना चाहता इन सब को।
ये सब हैं मेरे अपने तो,
कैसे मारूं बोलो अपनों को।
लालच में धरा यां राज्य के,
जो मारेंगे हम इन सब को।
लगेगा पाप हमें केशव,
जो मारेंगे हम अपनों को।
बोले भगवान ओ पापरहित अर्जुन,
तूं सुन ध्यान से मेरे बोलों को।
नही मरती आत्मा कभी,
और नां वो मारती किसी को कभी।
तूं शोक नां कर व्यर्थ का,
मैं मार चुका हूं पहले ही।
जो खड़े हैं तेरे सामने अब,
हर लूंगा तेरे पाप मैं सब,
हों पिछले यां तूने करें हो अब।
देख प्रभु का विराट रुप,
हो गया अर्जुन अब शोकरहित।
उठाया लिया फिर गांडीव तब,
और लगा मारने सब को अब।
नहीं रोका भीम को भी,
मारने को कौरव 100 पुत्र सब।
क्या सच में समझ गया अर्जुन?
जो कहा कृष्ण ने गीता में।
नहीं मानता वासल देवेन्द्र अभी,
आसान है मारना दूसरों को,
हो अधर्म के लिए यां धर्म वंश।
ज़रा सोचो समझो ध्यान से सब,
कहता है वासल देवेन्द्र अब।
नही सोचा होगा तुमने कभी,
गीता और अर्जुन का रंग ये कभी।
सारे ज्ञाता पड़ने वाले यां,
पढ़ाने वाले गीता को।
नहीं समझते यां बतलाते वो,
अर्जुन के इस रूप को।
क्या हुआ था अर्जुन को,
सुन गीता मुख भगवान से,
क्या चला गया था मोह उसका?
क्या मिट गया था भ्रम उसका?
नहीं मानता वासल देवेन्द्र ये,
सभी ज्ञानी, उच्च ज्ञानी,
जानने वाले गीता को।
पढ़ने और पढ़ाने वाले गीता को।
खोल कान, आंख, सुनो देखो,
क्या कहता है ये अधना कवि।
होने पर रचना चक्रव्यूह की,
ले गये जब दूर अर्जुन को।
फिर घेर सात महारथियों ने,
मारा अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को।
ज़रा सोचो समझो ध्यान से सब,
क्या हुआ तब निष्पाप अर्जुन को।
क्या कहा था अर्जुन ने सुन,
मृत्यु पुत्र अभिमन्यु की।
बोला अर्जुन रो रो कर,
होकर पूरा वो शोकग्रस्त।
यदि नहीं मारा मैंने जयद्रथ को,
होने से पहले कल सूर्य अस्त।
ले लूंगा समाधी अग्नि में,
समझ खुद को एक पिता विवश।
अर्जुन मारना चाहता जयद्रथ को,
वो कारण था अभिमन्यु मरने का।
नहीं मारना चाहता था अर्जुन,
किसी धर्म के वश,
पर केवल केवल बदले वश।
कहां ज्ञान गया तब अर्जुन का,
जो सुना था ईश्वर के मुख से।
था पापरहित उच्च आत्मा अर्जुन,
था कहना खुद ईश्वर का।
चुना था कृष्ण ने अर्जुन को,
नहीं चुना गंगा पुत्र भीष्म को।
जो रुप दिखाया अर्जुन को,
नहीं दिखाया रुप वो ब्रम्हा को।
फिर क्यों अर्जुन हुआ विचलित,
सुन ख़बर मृत्यु पुत्र अभिमन्यु की।
हुआ हाल अगर ये अर्जुन का,
सोचो व्यथा शमा ( author’s wife) और
वासल देवेन्द्र की।
खोने परअपना जवान बेटा,
क्या हाल हुआ होगा उनका।
क्यों नही अर्जुन सोच पाया तभी,
नहीं आत्मा है मरती कभी।
नही मरा है अभिमन्यु अभी,
बस देह परिवर्तन हुआ अभी।
खोने से अपना एक पुत्र,
भूल गया ज्ञान जो उसने पाया।
क्या बोला था वो कृष्ण को,
हां मेरा सब भ्रम मिट पाया।
हूं तैयार मैं युद्ध करने को।
मरते ही बस अपना पुत्र,
वो भूल गया ईश्वर रुप को।
कृष्ण मुख से निकले ज्ञान को,
यूं ही नहीं कहता वासल देवेन्द्र,
अर्जुन नही समझ पाया गीता को।
क्या ग़लत है कथन गीता का?
यां अर्जुन नहीं समझ पाया तब।
खुद भगवान नहीं समझा पाये,
उस पिता को था भीतर जो अर्जुन के।
फिर क्या ज्ञानी बनता है समाज,
बिना मिले ऐसे दुखों के।
जब अर्जुन हो सकता है विचलित,
क्या बात साधारण मनुष्य की।
देख रुप भगवान का,
और सुन ज्ञान उनके मुख से।
यदि मोह नही मिटा अर्जुन का,
अपने पुत्र अभिमन्यु से,
क्यों बनते हो बड़े ज्ञानी तुम,
जैसे हो बड़े तुम अर्जुन से।
और देते हो ज्ञान हमें,
जैसे हो बड़े तुम कृष्णा से।
नहीं मानता वासल देवेन्द्र,
कि अर्जुन समझ पाया गीता को।
यदि समझा होता उसने,
कृष्ण ( भगवान) के उस भाव को।
नहीं करता प्रकट इच्छा मरने की,
यां जयद्रथ को मारने की।
नहीं मानता वासल देवेन्द्र,
कि अर्जुन समझ पाया गीता को।
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