आईने से झूठ बोलने का हुनर.. Written by वासल देवेन्द्र.. D.K.Vasal
आईने से झूठ बोलने का हुनर।
कहा किसी ने मुझसे,
है जिंदगी आईने की तरहां।
वो तभी मुस्कुराएगी,
जब मुस्कुराओगे तुम अपनी तरहां।
ये बात नही है कोई नई,
हैं जानते ये हम सभी।
पर सच तुम भी,
जान लो अभी।
नहीं झूठ बोलता,
आईना कभी।
नहीं छिपा सकते हम,
खुद से खुद को,
करें कितनी भी कोशिश हम सभी।
दर्द हो सीने में अगर,
तो कैसे आये होंठों पे हंसी।
हां हैं हम झूठ बोलने में माहिर सभी,
तुम सिखा रहे हो नया हुनर।
कैसे बोला जाता है झूठ,
खुद से और आइने से भी।
तुम भी ज़रा समझ लो अभी,
नहीं झूठ बोलता आईना कभी।
जब ज़ख्म देखता है आईना,
तो दिखाता है ज़ख्म आईना भी।
है कहना वासल देवेन्द्र का,
अगर हो दिल में खुशी,
आईना भी नाच उठता तभी।
जब घाव लगा दिल आये सामने,
तो आईना भी टूट जाता कभी।
मैं समझता हूं मतलब तुम्हारा,
तुम भी ज़रा समझो मुझे।
ये घाव नहीं है मामूली,
लगेगा समय संभलने में मुझे।
सम्भल भी जाऊंगा अगर मैं,
तो चाल रहेगी लड़खड़ाती।
इस उम्र में ही तो बेटा,
होता है बाप बूढ़े की बैसाखी।
जिस वक्त से गुज़र रहा हूं मैं,
वहां वक्त भी रुक गया अभी।
आंसू नहीं होते हैं पानी,
तुम सब भी जान लो ये अभी।
कहां बूझा पाते हैं वो,
जो दिल में लग जाये आग कभी।
अब नां सिखाओ मुझे झूठ बोलना,
और नां सिखाओ मुझे नया हुनर।
कैसे दूं रिश्वत शीशे को,
है वो वफादार अगर।
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It is said rightly that mirror sow as it is you are . In short show absolutely true picture. It is only individual who try to read differently and convince himself what he perceives in his mind
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