बस बदनाम है नाम मेरा… Written by वासल देवेन्द्र..D.K.Vasal
बस बदनाम है नाम मेरा।
है चीज़ एक मैंने जाना,
जो रहती हर दम हर जगह।
नां अपना, पराया नां दोस्त उसका,
हर ‘श’ पर है राज उसका।
हर शाम , सहर , दरबार उसका,
हो वक्त जैसे ग़ुलाम उसका।
कोई घर-बार नां कोई शहर उसका,
नां धर्म, अधर्म है कर्म उसका।
सोचता है वासल देवेन्द्र ये,
है सबसे अलग व्यापार उसका।
लेकर हमारा सब कुछ भी,
कुछ नां देना है व्यवहार उसका।
मिल जाए कहां किसी को वो,
नही जानता कोई मार्ग उसका।
है धरती, आकाश, पाताल में वो,
है हवा की तरहां ही हाल उसका।
दबे पांव आ जाती है,
ढ़ूढो तो दिखती नहीं।
रहती है हर पल आस पास,
पर कोई एहसास देती नहीं।
नां रंग रूप नां गंध उसकी,
है नर यां मादा नां खबर उसकी।
है वो एक ही चीज़ सिर्फ ऐसी,
नही होती हार कभी जिसकी।
है मिलती जो हर जगह,
हर शहर में हर बस्ती में।
हर गली में हर कूचे में,
बूझो तो क्या है नाम उसका?
चलो छोड़ो जाने दो,
नां उलझो इस प्रश्न में तुम।
अब मैं ही बता देता हूं तुम्हें,
है “मौत” शायद नाम उसका।
पूछा मौत से, ,वासल देवेन्द्र ने,
क्यों अचानक होता ,आना तेरा?
हंस कर बोली ,मौत तब,
कहां आती पहले ,मैं वक्त से।
मैं गुलाम हूं ,वक्त की,
नही वक्त है ,गुलाम मेरा।
है शरारत ये ,सब वक्त की,
बस बदनाम है ,नाम मेरा।
बस बदनाम है ,नाम मेरा।
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Vasal Sir has given a totally new perspective on DEATH, whom all of us abhor.
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Very apt, DKV ! Death comes from nowhere, hits suddenly, and there is no escape.
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