छोड़ो मोह के धागे… WRITTEN BY वासल देवेन्द्र..
D.K.Vasal
छोड़ो मोह के धागे।
सब कहते हैं भूल जाओ अब,
और बढ़ो तुम आगे।
शायद वो नहीं जानते,
क्या होते हैं मोह के धागे।
होते दायरे छोटे मोह के,
पर मजबूत होते हैं उसके धागे।
बचपन से कहते बढ़ाओ मोह अपनों में,
फर्क है जो गैरों में अपनो में,
बस फर्क उतना ही प्यार और मोह में।
प्यार सब करते औरों से भी,
पर मोह होता बस अपनो से ही।
जानते हो क्यों बड़ा हाथी भी,
तोड़ नही पाता,
कमजोर रस्सी की एक बेड़ी को।
बचपन से हैं उसे सिखाते,
तुम तोड़ नां पाओगे इस रस्सी को।
मरता है जब एक कौवा,
मोह में इकट्टे कौवे रोते।
क्या देखा कभी कबूतर-चिड़ियो को,
मोह के वश में हों कभी रोते ।
सुन लो ज़रा घ्यान से तुम भी,
ईश्वर कृपा है एैसी कौवे पे।
शास्त्रों में आता काक भुशुणिड,(उत्तर काण्ड – रामचरितमानस)
नही कोई कथा कबूतर चिड़ियों पे।
मत उलझो तुम शब्दों के खेल में,
है कहता वासल देवेन्द्र।
कहने वाला हूं अब मैं सच,
कड़वा बहुत होता है सच।
आडम्बर है फर्क प्यार और मोह में,
झूठी है व्याख्या प्यार और मोह की।
बिना मोह नहीं होता प्यार,
झूठ बोलते हैं हम सबसे,
करते हैं हम तुम से प्यार।
हमदर्दी जो हम करते हैं,
हम देते हैं उसे प्यार का नाम।
ज़रा तुम मुझको समझा दो,
देख हालत राधा की बता दो।
क्या करते थे राधा श्याम,
मोह करती थी राधा श्याम से,
यां वो करती श्याम से प्यार।
क्या चाहती थी राधा श्याम से,
कि श्याम रहें बस उसके पास।
यही होती है मोह की निशानी,
यही होती है प्यार की आस।
कैसे फर्क करें दोनों में,
जब लक्षण हैं दोनों के समान।
प्यार करो यां मोह करो,
दोनों ले लेते हैं जान।
मोह के धागे होते पक्के,
मोह के धागे इतने पक्के।
बिना मोह के धागे के तो,
बिखर जाते राधा और श्याम।
कहते हो अब छोड़ो मोह को,
और बढ़ो तुम आगे।
कैसे इन्सान छोड़े मोह को,
और बढ़े वो आगे।
बिना मोह के धागे के तो,
हो जायेंगे राधा श्याम भी आधे,
रह जायेंगे राधा श्याम भी आधे।
….
Vasal Sir has enlightened us with this poem which pushes us to think over the subtle differences in love,sympathy and attachment.
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Beautifully brought out , the main trait of human being that is attachment. Absence of this might have brought near to animals
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