डर लगता है डर लगता है… Written by वासल देवेन्द्र..D.K.Vasal
डर लगता है डर लगता है।
छलनी कर गया सीना मेरा,
दे गया मुझे वो घाव जितने।
भीष्म को नां मारे होंगे,
अर्जुन ने भी बाण इतने।
हर घाव रोता है बारी बारी,
है रिसता रहता ज़ख्मो से,
हर दम ये ख़ून मेरा।
सब देखो, सब देखो,
कितना हूं बेशर्म बाप।
देख लाश बेटे की अपने,
ज़िंदा हूं अब तक मरा नहीं।
झूठ नही लिख सकता हूं मैं,
रोते रहते हैं हम तीनों।
मां बाप और पत्नी उसकी,
बैठता रहता है दिल सबका,
देख देख तस्वीर उसकी।
कैसे मर सकता हूं मैं,
रहना है मुझको ज़िंदा।
करने को बड़ी उसकी निशानी,
स्याही की जगह जो दे गया खून,
लिखने को मुझे एक नई कहानी।
इतिहास में लिखना दुनिया वालो,
बेशर्म वासल देवेन्द्र की कहानी।
मरा नही वो बेटे संग,
रहा ज़िंदा लिखने को नई कहानी।
सच कहता हूं, सच कहता हूं,
भय लगता है भय लगता है।
जैसे आस पास ही मेरे अब तो,
डर बसता है डर बसता है।
परछाई से अपनी डर लगता है।
डर लगता है डर लगता है
हवाओं में अब चारों ओर,
ज़हर लगता है ज़हर लगता है।
वक्त में जैसे,
यम लगता है यम लगता है।
निगाहें सब की चुभती हों जैसे,
मिलने से किसी को,
डर लगता है डर लगता है।
सन्नाटा बस,
अच्छा लगता है अच्छा लगता है
डर लगता है डर लगता है,
किसी को प्यार करने से,
डर लगता है डर लगता है।
किसी को अपना कहने से,
डर लगता है डर लगता है।
किसी को बेटा कहने से,
डर लगता है डर लगता है।
कांपती रहती है रुह हर दम मेरी,
जैसे आस पास ही मेरे तो अब,
डर बसता है डर बसता है।
हर पल रोने को,
मन करता है मन करता है।
नां कोई रोके नां कोई टोके,
आंसू पीने को,
मन करता है मन करता है।
रहना है मुझको ज़िंदा पर,
मर जाने को,
मन करता है मन करता है।
अब तो जैसे आस पास ही
डर बसता है डर बसता है
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i know somethings are very difficult to bear, feeling very sad after reading this poetry .may god bless his soul !may god give strength to fulfill your extended responsbilities !
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😦
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Very poignant & evocative poem. Time is the only healer after a personal tragedy.
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