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विश्वास नहीं होता है कृष्णा।
विश्वास नहीं होता है कृष्णा… Written by वासल देवेन्द्र…D.K.Vasal.
विश्वास नहीं होता है कृष्णा।
सच कहता हूं कृष्णा तुझसे,
झूठ नही कह सकता मैं।
विश्वास नहीं होता है मुझको,
व्यवहार किया जो तुने मुझसे।
ज़ुबान नहीं थकती थी मेरी,
कृष्णा कृष्णा कहते कहते।
पागल सा कर दिया है मुझको,
छीन कर मेरा बेटा मुझसे।
लगता था जैसे तूं है मेरा,
कुछ ग़लत मेरा हो सकता नहीं।
अब लगता वो वहम था मेरा,
कहां रिश्ता था तेरा मेरा।
तूं मालिक धरती आकाश का,
और मैं भिखारी तेरे द्वार का।
भूल थी मेरी मैं रहा समझता,
तूं भूखा है केवल भाव का।
तू तो है बस एक भगवान,
और वासल देवेन्द्र एक अधना इन्सान।
भूल गया था औकात मेरी मैं,
चला जोड़ने रिश्ता तुझसे।
कहां जोड़ा तूने कभी रिश्ता,
कहां निभाया तूने कोई रिश्ता।
सब पागल हैं जो ये समझते,
पा लेंगे तुझे हंस के यां रो के।
अपनी धुन में रहता तुझे पूजते,
क्या करता रहता है तूं???
थक जाते लोग पूछते पूछते,
नां हाथ नां मुंह थकते थे मेरे,
तेरे नाम की माला जपते।
छीन कर सबसे प्यारी चीज़,
कहता है तुम रहो खामोश।
लुट जाये संसार अगर भी,
मत खोना तुम अपना होश।
इन्सान हैं हम भगवान नहीं,
जो हंसते रहें सब खो कर भी।
जिस दिन सीख लेंगे हम वो,
बन जायेंगे हम भगवान सभी।
फिर होंगे हम इन्सान नही,
और तूं अकेला भगवान नहीं।
कहां समझा पाया तूं अर्जुन को,
दिखा कर रुप अपना भगवान।
सुना दी तूने पूरी गीता,
क्या मिला अर्जुन को ज्ञान?
कहां मिला अर्जुन को ज्ञान?
खो बैठा था होश अर्जुन भी,
मरने पर बेटा अभिमन्यु।
भूल गया वो तेरा रूप,
और जो भी तूने दिया था ज्ञान।
विश्वास नहीं होता मुझको तो,
कि यही थी गीता और उसका ज्ञान।
सब रटते रहते हैं जिसको,
जैसे रटती तोते की ज़ुबान।
एक बार समझा जा कृष्णा,
कहता है वासल देवेन्द्र।
कैसी थी वो गीता तेरी,
और कैसा था उसका ज्ञान।
मैं भी तो समझ लूं तुझसे,
क्यों अर्जुन नहीं समझ पाया वो ज्ञान।
क्यों छोड़ नहीं पाया अर्जुन,
मोह अपना और अपना अभिमान।
प्रार्थना है वासल देवेन्द्र की,
कोई तो दे मुझे उत्तर इसका।
मन नही करता अब मेरा,
पढ़ने को गीता और उसका ज्ञान।
प्रश्न पूछना हक है मेरा,
सोच समझ कर देना जवाब।
ध्यान से समझना प्रश्न मेरा,
देने से पहले कोई जवाब।
विश्वास नहीं होता है कृष्णा,
तुम करोगे मुझे से ऐसा व्यवहार।
मैं हर पल रहता खोया तुझमें,
बस तूं ही था मेरा संसार।
ओ कृष्णा तूं कुछ तो बोल,
नहीं दे पायेंगे कोई उत्तर।
ये आंख मूंद सब पढ़ने वाले,
तोते की तरहां बस रटने वाले।
धरती बोले यां बोले आकाश,
कोई तो होगा प्रकृति में तेरी।
जिस पर होगा तुझको विश्वास,
नहीं पढूंगा गीता तेरी,
जब तक नां मिले मुझे सारांश।
विश्वास नहीं होता है कृष्णा,
तुम करोगे मुझ से ऐसा व्यवहार।
हर पल रहता खोया तुझमें,
बस तूं ही था मेरा संसार।
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Words coming from the grieving heart of a doting father…….
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