ओ ख़ुदा एक बार बस एक बार…. Written by वासल देवेन्द्र…..D.K.Vasal.
ओ ख़ुदा,
एक बार बस एक बार,
बन कर आम इंसान तूं आ।
खो अपनी औलाद को,
फिर मुस्कुरा के दिखा।
हंसेगा वासल देवेन्द्र तुझ पर,
मार ठहाके बार बार।
वादा है तुझसे मेरा ये,
ओ मेरे ख़ुदा।
कभी तो यूं खुद को भी,
तूं ज़रा आज़मा।
मैं नहीं जानता,
क्या तेरी जन्नत में,
है सबसे कीमती।
पर इस जहां में,
नहीं कुछ,
दिल के चिराग से कीमती।
ओ ख़ुदा क्यों तूने,
ये पाप किया।
करने को अपनी जन्नत रोशन,
अंधेरा मेरे घर किया।
जन्नत में यूं भी रोशनी,
कहां कम थी पहले भी।
जो मेरा था एक चिराग,
तूने वो भी ले लिया।
कैसे चुका पायेगा,
मेरा उधार तूं ख़ुदा।
इस बार उधार तूने,
बहुत बड़ा ले लिया।
तूं ख़ुद नही जानता,
ये तूने क्या किया।
चिराग ले लिया,
दर्द दे दिया।
घर आंसूओं से मेरे,
समंदर कर दिया।
मैं जानता हूं औकात मेरी,
और हस्ती भी जानता हूं तेरी।
जब कुछ नां कर सका बच्चा,
सुन कर बड़े से बात बुरी।
बस दूर से फैंकना पत्थर,
थी बच्चे की एक मजबूरी।
समझ गया होगा तू भी,
क्या मंशा है मेरी।
तेरी नां इंसाफी ने,
है बढ़ाई हिम्मत मेरी।
जानता हूं रुतबा तेरा,
और जानता औकात मेरी।
फिर भी पत्थर उठाने की,
तूं देख ले ज़ुरत मेरी।
अब तो ज़रा समझ जा तूं,
खो कर जवान बेटा अपना।
मां बाप की हो गई,
कितनी मजबूरी।
करने को अपनी जन्नत रोशन,
अंधेरा मेरे घर किया।
बस एक बार बस एक बार,
बन कर आम इंसान तूं आ।
खो अपनी औलाद को,
फिर मुस्कुरा के दिखा।
****
Very well written. Poet has been able to pour out pain of his heart due to untimely death of near and dear
LikeLike