कहां लिखती है कलम कभी .. Written By
वासल देवेन्द्र..D.K. VASAL
कहां लिखती है कलम कभी।
कहां लिखती है कलम कभी,
भावनायें उमड़ती हैं कवि की,
बन कर काग़ज़ पर स्याही।
महसूस कर ले वो जिस अहसास को,
वो हो जाती रचना उसकी,
कहां लिखती है कलम कभी।
रचना हो मासूम अगर,
समझो दिल से है निकली।
ले आये अगर आंख में आंसू,
समझो रुह से है निकली।
जात नही होती कवि की,
नां होती कोई सीमा उसकी।
बिना पंख और बिना उड़े,
है नज़र में सारी सृष्टि उसकी।
जैसा हो मौसम संसार का,
सुख दुःख यां खुशियां उसकी।
महसूस कर ले वो जिस एहसास को,
वो हो जाती रचना उसकी।
नां जाने किस धातु का,
दिया दिल खुदा ने कवि का।
ख़ुशी किसी के घर भी हो,
मुस्कुराती रचना उसकी।
आंख हो अगर नम किसी की,
रोती है रचना उसकी।
देख कर कमजोर गरीब को,
करता है फरियाद कवि।
कर दया ख़ुदा कुछ उन पर भी,
रोज़ नहीं तो कभी कभी।
कहता है वासल देवेन्द्र,
नां बनाना ख़ुदा तूं और कवि।
कवि के लिए तूं जान ले अब,
सही तेरा अब संसार नही।
खुशियां कम और दर्द ज़्यादा,
है तेरे संसार की रीत यही।
आभास कर ले जिसका भी कवि,
हो जाये वो रचना उसकी।
एक दिन सोचा मैंने भी,
मैं भी आज लिखता हूं कुछ।
बस फिर कर ली मैंने जमा,
रंग बिरंगी स्याही और कलमें कुछ।
कोशिश बहुत करी मैंने पर,
लिख नां पाया थोड़ा भी कुछ।
पल भर में आ गया समझ में,
आसान नहीं बनना कवि।
भावनायें उमड़ती हैं कवि की,
बन कर कागज़ पर स्याही।
कहां लिखती है कलम कभी।
कहां लिखती है कलम कभी।
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Excellent creation. Really remarkable how simple facts unknown to masses , about a poet has been highlighted
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Thank you Bhargav ji
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