ओ कृष्णा…. WRITTEN BY वासल देवेन्द्र..D.K.VASAL
ओ कृष्णा।
है सुना भी और पढ़ा भी मैंने,
जिसकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
अनंत है तूं अनंत तेरी सूरत,
समस्या है ये कृष्णा मेरी।
किस रुप में देखूं सूरत तेरी,
किस भाव से देखूं मूरत तेरी।
बैठे कदम्ब के पेड़ पर देखूं
यां बजाते तुम्हें बांसुरी देखूं।
तुम्हें यमुना के तीर पर देखूं,
यां गोपियों की चुराते चुनरी देखूं।
पाते नाम दामोदर देखूं,
यां फिर ओखल से बंधते देखूं।
यां मुंह खोल दिखाते मां यशोदा को,
मुंह में ही ब्रह्मांड देखूं।
खेलते गेंद ग्वालों के संग,
यां तोड़ते कालिया नाग का अंग।
चुराते माखन करते हुए तंग,
यां हर पल देखूं राधा के संग।
पड़ते गुरुकुल में मित्रों के संग,
यां मित्र-भक्त सुदामा अपने के,
धोते हुए पैरों के अंग।
करते प्रणाम गुरु संदिपणी को देखूं,
यां उठा गोवर्धन उंगली पर अपनी,
तोड़ते घमंड इन्द्र का देखूं।
करते हुए मामा कंस का वध,
यां रूक्मणी को भगा ले जाते देखूं।
यां करते रूकम्या को गंजा देखूं
यां शिशुपाल को मारते देखूं।
ठुकराते दुर्योधन का भोजन देखूं,
यां विदुर का खाते साग देखूं।
द्रोपदी की बचाते लाज देखूं,
यां रास लीला तुम्हें करते देखूं।
रण छोड़ तुझे मैं जाता देखूं,
यां समुंद्र में द्वारिका बसाते देखूं।
जरासंध को मरवाते देखूं,
यां द्वारिका समुंद्र में डूबोते देखूं।
बनते द्वारिका दीश देखूं,
यां युधिष्ठिर का संधी दूत देखूं।
बजाते पंचजनया शंख देखूं,
यां करते भीष्म को प्रणाम देखूं।
अर्जुन का बनते सारथी देखूं,
यां दिखाते विराट रूप मैं देखूं।
बनाते अभिमन्यु को शिष्य देखूं,
यां अभिमन्यु को छोड़ कर जाते देखूं।
कवच कुंडल कर्ण के मांगते देखूं,
यां कर्ण को ही मरवाते देखूं।
बेली से तीर खाते देखूं,
यां छोड़ कर दुनिया जाते देखूं।
पूछता है वासल देवेन्द्र ओ कृष्णा,
मैं तूझे किस रुप में देखूं।
समझ नहीं आता है कृष्णा,
कैसे और किस रुप में देखूं।
घरती यां आकाश में देखूं,
प्रत्यक्ष यां अप्रत्यक्ष देखूं।
घ्यान लगाने को है ज़रुरी,
बस तुझे एक रुप में देखूं।
समझ नहीं आता है कृष्णा,
मैं तुझे किस रुप में देखूं।
मैं तुझे किस रुप में देखूं।।
***
Nice one, DKV. HE is everywhere….
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Thank you. May GOD BLESS YOU
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