कृष्णा ने खेली खून की होली।
कृष्णा ने खेली खून की होली… Written by वासल देवेन्द्र..D.K.Vasal.
कृष्णा ने खेली खून की होली
कृष्णा ने भी खेली होली,
सब अपनों से खेली होली।
कभी फूलों से कभी रंग से,
कभी ख़ून से खेली होली।
राधा संग रंगों से खेली,
भक्तों संग फूलों से खेली।
अपनों संग मुस्कान से खेली,
महाभारत में खून से खेली।
क्या समझाया कृष्ण ने हमको,
जैसा संग हो वैसी होली।
दोस्तों संग रंगों की होली,
हो अपनों संग हंसी की होली।
और महाभारत में खून की होली।
खो कर कौरव पुत्र 100 ,
कौरवों की मां गंधारी ने।
तब दिया श्राप कृष्णा को,
मिलेगी सांत्वना मुझे तभी,
हो जाये विनाश यदुवंश का जो।
सर झुका कर कृष्णा बोले तब,
है मुझे स्वीकार मां श्राप तेरा।
होगा ये कथन पूरा तेरा,
हो जायेगा यदुवंश नाश मेरा।
पर सुन माता मेरी गाथा तूं,
इस संसार में होता जो भी कुछ।
सहता सब कुछ मैं ही हूं,
लगे चोट किसी को भी,
खून बहता बस मेरा ही।
कहना चाहते थे कृष्णा,
सैनानी का घाव भी मैं हूं।
महारथियों का ज़ख्म भी मैं हूं,
दुर्योधन की टूटी जांघ भी मैं हूं।
दुशासन की छाती का लहू भी मैं हूं,
भीष्म को चुभते बाण भी मैं हूं।
बहे लहू चाहे किसी के घाव से,
है बहता वो मेरे अंग से।
विधवाओं का दर्द भी मैं हूं,
माताओं की चीख भी मैं हूं।
अनाथों का लूटा संसार भी मैं हूं,
पिता की निकली कराह भी मैं हूं।
तुम्हारे भीतर रोता एक रिश्ता,
मेरे भीतर रोती ये धरती।
मेरे भीतर रोता आकाश,
तुम्हारे साथ रोते बस अपने,
मेरे भीतर रोता संसार।
कहना कृष्ण (भगवान) का है सब सत्य,
पर हैरत होती है वासल देवेन्द्र को।
कैसी कृष्णा ने खेली होली,
कौन खेलता है ऐसी होली?
जैसी कृष्णा ने खेली होली।
नही करते कृष्णा गलत कभी,
कुछ कारण तो होगा तभी।
जो अपने ही खून से खेली होली,
हां अपने ही खून से खेली होली,
हां कृष्णा ने खेली खून की होली।
देख हालत कृष्णा की तभी,
कहता है वासल देवेन्द्र अभी।
आओ खेलें हम भी होली,
बिना मौसम की खेलें होली।
ग़रीब संग करूणा की होली,
कृष्णा संग आत्मा की होली।
कहे पुकार उसे आत्मा मेरी,
तूं मेरा ..मैं तेरी हो.. ली।
तूं मेरा मैं तेरी हो….ली।
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