सिर्फ सच, केवल सच… Written by वासल देवेन्द्र..D.Vasal
बहुत बहुत कड़वा सच,
पुराणों की वाणी का सच।
AN ABSOLUTE CHASTE TRUTH
सिर्फ सच- केवल सच।
सच लिखूंगा, सिर्फ सच,
सच के सिवा, कुछ भी नहीं।
ले लेना तुम, जान मेरी,
अगर नहीं ये, केवल सच।
कहते हैं खुद ईश्वर ही,
और उनके अवतार सभी।
कथांयें उनकी और लीला सभी
देती हमें सीख जीने की।
सोचा वासल देवेन्द्र ने,
मैं भी सीख लेता हूं कुछ।
पड़ा मैंने इतिहास को फिर,
युगों युगों से कलियुग तक।
क्या हुआ था मां पार्वती को,
जब शिव ने किया था प्रहार,
और गणेश ने खोये अपने प्राण।
बिलख बिलख कर रोती थी वो,
बोली तब मां पार्वती।
जैसे तैसे कुछ भी करो,
बस जीवित कर दो मेरा गणेश।
नहीं तो मैं भी दे दूंगी,
प्राण अपने ओ प्राणपति।
क्या हुआ था शिव को तभी,
जब सती (पार्वती) हुई भस्म जभी।
बेहोशी में हो दीवाने शिव ने,
हिला दी पूरी सृष्टि तभी।
छोड़ दिया सब काम अपना,
पशुपति ने एक पल में तभी।
ये सब हुआ युगों से पहले,
नां त्रेता था नां कलियुग तभी।
अब जब आया त्रेता युग,
राम को भी आना था अभी।
क्या हुआ था राम को,
होने पर मुर्छित लक्ष्मण के।
बोले वो विभीषण से,
मैं तोड़ता हूं अपना वचन अभी।
नां उठा जो लक्ष्मण तो,
मैं दे दूंगा अपने प्राण तभी।
नां जाउंगा अयोध्या मैं,
नां करुंगा रण मैं अभी।
डूबता है तो डूब जाये,
सूर्यवंश का नाम अभी।
जो कहते हैं सूर्यवंशी सभी,
प्राण जाए नां वचन कभी।
तब आया फिर द्वापर युग,
खुद आये मेरे हरि (कृष्णा) तभी।
क्या हुआ था तब अर्जुन को,
देख मरा पुत्र अभिमन्यु को।
बदले के भाव से वो बोला,
मार दूंगा जयद्रथ को,
यां कर दूंगा मैं भस्म खुद को।
देख कर ये सारा इतिहास,
सोचता है वासल देवेन्द्र।
क्या सीखूं मां पार्वती से,
बैठ जाऊं मैं करके ज़िद।
जैसे तैसे लाओ गिरीश ( मेरा पुत्र),
चाहे लगा दो गज का शीश।
क्या सीखूं शिव से मैं,
छोड़ दूं सब काम काज,
डूबा रहूं बस दुख में मैं।
क्या सीखूं राम से मैं,
तोड़ दूं अपना वचन,
छोड़ दूं हरि नाम को मैं।
क्या सीखूं अर्जुन से,
बदले का भाव यां आत्मघात।
देख कर ये सारा इतिहास,
सच कहता है वासल देवेन्द्र।
भगवानों से अच्छा है,
कलियुग में हरि का इन्सान।
यूं ही नहीं कहता वासल देवेन्द्र,
ज्ञान सबका सिर्फ ज़ुबानी।
जब गुजरेगी खुद पर यारो,
तब पूछूंगा कितने ज्ञानी।
भूल जाओगे ज्ञान गीता का,
भूल जाओगे तुम गुरुबाणी,
बाईबल, कुरान की सब कहानी।
सब कुछ कहा सच है मैंने,
झूठी नहीं है कोई कहानी।
ये सब तो हैं सची कहानी।
ये सब तो है सच्ची कहानी।।
सीखूंगा मैं जरूर तो कुछ,
इतिहास से ही सीखूंगा मैं।
आदत है वासल देवेन्द्र की,
हर पल नया सीखना कुछ।
मीरां से दीवाना होना,
शबरी से सीखूं इन्तज़ार।
भक्त सुदामा से मैं सीखूं,
निस्वार्थ हर पल हरि का नाम।
कवि हूं मैं, हूं कहता कविता,
सच कहना है मेरा काम।
कड़वा हो यां मीठा सच,
कहता हूं मैं पूरा सच।
सिर्फ सच केवल सच।।
*****
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Absolutely truth. Loss of near and dear is virtually intolerable for any one who has taken birth as human being. Perhaps our mythological stories reminds us that no body who has come in Mritulok has escaped from such happenings, and still life goes on
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Truth only Truth
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