यादें…हर मुर्दा है ज़िंदा।…
Written by वासल देवेन्द्र D.K.Vasal.
यादें…हर मुर्दा है ज़िंदा।
जिंदगी बस,
यादों का डेरा।
और क्या है यहां,
तेरा और मेरा।
हालात जब भी,
डराते हैं मुझको।
छिपा लेता है मुझे,
यादों का घेरा।
ये बस यादें ही हैं,
जीने का सहारा।
हों उजड़े चमन की,
यां बरखें बहारां।
हों सुखे मौसम की,
यां बारिश की फुहारां।
बिना यादों के,
इन्सान कुछ भी नहीं।
नां हों यादें तो,
हमारा कुछ भी नहीं।
हम रहें नां रहें,
वो रहती हैं हमेशां।
हर मुर्दे को रखती हैं,
ज़िंदा हमेशां।
बिना यादों के,
हर ज़िंदा भी मुर्दा।
यादों के सहारे,
हर मुर्दा भी जिंदा।
याद रखने की,
हमको जरुरत नही।
भूल जाने की,
इन्सानी फितरत नहीं।
बस जाये जो,
दिल में एक बार।
भुलाना फिर उसको,
मुमकिन नहीं।
हर याद रहे याद,
ये ज़रूरी तो नहीं।
हर याद भूल जाये,
ये भी तो नहीं।
छन छन कर,
आती हैं बार बार।
बिना इजाज़त,
रुलाती हैं बार बार।
आती हैं वक्त नाज़ुक की,
तो रुलाती हैं बहुत।
अगर हों हंसने की,
तो रुलाती हैं और भी।
यादें तो हैं,
गुज़रे वक्त का लम्हा।
वापिस आ सकता नहीं,
भुलाया जा सकता नहीं।
यादे साफ हों यां धुंधली,
सब लगती हैं भली।
हों लिखी स्याही काली से,
यां लाल से,
सब रहती हैं हरी।
हैं रहती खटखटाती,
मेरे मन को हर घड़ी।
वो पतंग की डोर,
वो लट्टू की डोरी।
सुनाई मेरी मां ने,
जो प्यारी सी लोरी।
था सांवला कन्हैया,
और राधा थी गोरी।
वो दोस्तों की टोली,
वो बिन मौसम की होली।
कन्हैया ने भिगोदी,
मां राधा की चोली।
उस गुज़रे ज़माने की,
आती है बहुत याद।
खटखटाती है मेरे मन को,
यादे वो बार बार।
आती है मुझे याद,
उन दिनों की हर शाम।
होता था लाल आसमान,
तब भी हर शाम।
दिन तब भी था उजला,
और काली थी रात।
नां बदली ये धरती,
नां बदला आकाश।
बदल गया वक्त,
बदल गये हालात।
हैं वासल देवेन्द्र में,
वो यादें सब भरी।
वो यादें हैं अपनों की,
हमेशां रहती हैं हरी।
बिना यादों के,
इन्सानकुछ भी नहीं।
नां हों यादें तो,
हमारा कुछ भी नही।
हम रहें नां रहें,
वो रहती हैं हमेशां।
हर मुर्दे को रखती,
वो ज़िंदा हमेशां।
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Sir, it’s really good.
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Well drafted and manage to give deep message about memories
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Beautiful!!!!
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Simply super sir
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