सीने से लगने वाले… Written by वासल देवेन्द्र…D.K.VASAL
हर चीज़ बेचते हैं बाज़ार में,
आज कल के बेचने वाले।
हो नई यां पुरानी।
ढूंढा मैंने भी बहुत,
पर नही मिलते अब,
वो सीने से लगने वाले।।
दर्द बांटते थे सब,
हों अपने यां पराये।
अब एक भीड़ है बस,
हैं सब उसका हिस्सा।
उस भीड़ में खो गये,
सब अपने सब पराये।
किसी से अपना भी सुनना,
अब अपना नहीं लगता।
हर शब्द,
मतलब की चाशनी में डूबा लगता।
कहा मुझसे उसने,
फिर ढूंढता हूं बाज़ार में।
शायद मिल जायें कहीं,
वो सीने से लगने वाले।
आ गया वो जल्द ही,
लौट के वापिस।
और बोला,
बाज़ार सारा कहता है,
दीवाना मुझको।
क्या ढूंढता है तूं,
इस मतलब के दौर में।
ठीक जो देगा कीमत तो,
मिल जायेंगे तुझे,
हज़ार यहां,
सीने से लगने वाले।
मुफ्त में,
अब कुछ नहीं मिलता।
सब मर गये,
वो दिल से, सीने से लगने वाले।
और बोला,
बाज़ार कहता है मुझसे,
ये बाज़ार है,
नई और पुरानी चीजों का।
नहीं बाज़ार है ये,
दिल जैसी नकारा चीज़ों का।
मैंने कहा।
सच ही तो कहता है बाज़ार,
बिना मतलब,
अब कौन करता है आदाब।
मुस्कुराहट भी देंगे,
तो मांगेंगे कीमत।
कहां बची किसी के पास,
अब अपनी मुस्कुराहट,
लेकर वो भी आयेंगे
किसी से उधार।
समझ गया वासल देवेन्द्र,
मैं ग़लत हूं।
जो ढूंढने निकला,
वो सीने से लगने वाले।
जब सीने ही नहीं बचे,
तो कहां मिलेंगे,
सीने से लगने वाले।
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bahut bahut sunder
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Thank you very much. May God bless you
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my pleasure
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JAI SHRI KRISHNA
BEST OF BESTS POEM
VERY TOUCHING, PRACTICAL IN TODAY’S SCENERIO 👏 👌
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