कुछ तो जरूर हुआ होगा। Written by वासल देवेन्द्र। D.K.Vasal.
कुछ तो जरूर हुआ होगा।
दर्द जब बढ़ा मेरा,
रुक गया मैं।
मुड़ा ज़रा,
देखने को अपने,
गुनाह ज़रा।
यूं ही नहीं दर्द बढ़ा होगा,
कुछ तो ज़रूर हुआ होगा।
कोई बड़ा गुनाह हुआ होगा,
यां ख़ुदा को धोखा हुआ होगा।
कुछ तो जरूर हुआ होगा,
कहां मैंने कुछ सोचा होगा।
कहां दर्द को याद किया होगा,
बस सिर्फ गुनाह किया होगा।
झांकते कहां हैं हम खुद में,
ख़ुदा से कम नहीं समझते ख़ुद को।
इसी वहम में कोई गुनाह किया होगा,
यां आज़माया किसी बददुआ को होगा।
कुछ तो जरूर हुआ होगा,
यूं ही रुठा नहीं ख़ुदा होगा।
बख्श देता है वो गुनाह सबके,
मेरा गुनाह जो नही बख्शा,
तो गुनाह बहुत बढ़ा होगा।
कुछ तो जरूर हुआ होगा,
किसी ने ख़ुदा को पुकारा होगा।
हो तंग मेरे जुल्मों सितम से,
इन्साफ ख़ुदा से मांगा होगा।
कुछ तो गुनाह हुआ होगा,
देने को बददुआएं मुझे,
यां गिनने को गुनाह मेरे
गुना अपनी हाय (गुना×ह)को किया होगा।
कुछ तो जरूर हुआ होगा,
कोई बड़ा गुनाह हुआ होगा।
करुणा से भरे ख़ुदा को भी,
मजबूर मैंने किया होगा।
देने से पहले दर्द मुझे,
वो करुणानिधि भी रोया होगा।
नहीं करनी आती दुआ मुझको,
कैसे माफ़ी मांगू मैं।
बख्श दे। बख्श दे। बख्श दे,
बस इतना ही कहूंगा मैं।
है पापी बहुत वासल देवेन्द्र,
पर तूं तो है सबका ख़ुदा।
तूं समझ हुई पूरी मेरी सज़ा,
बख्श दे। बख्श दे। बख्श दे
ओ मेरे ख़ुदा।
दर्द जब और बढ़ा,
मैं रुका, कुछ मुड़ा।
देखने को अपने गुनाह ज़रा।
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This poem may be based on popular saying on human behaviour
‘ it is a study of black cat in dark room where there is no cat at all
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