दौड़ो दौड़ो मन्दिर दौड़ो। Written by वासल देवेन्द्र। D.K. Vasal
दौड़ो दौड़ो मन्दिर दौड़ो।
दौड़ो दौड़ो मन्दिर दौड़ो,
दौड़ो गिरिजाघर , गुरुद्वारे भी।
भीतर अपने नहीं मिला तो,
ख़ुदा मिलेगा कहीं नहीं।
मन्दिर का मतलब,
मन के अन्दर।
नहीं मिला जो अपने अन्दर,
तो मन्दिर मिलेगा कहीं नहीं।
भागते फिरते खोजते उसको,
जो हर पल रहता अपने अंदर।
जैसे ढूंढता हिरण खुशबू को
रख कस्तूरी अपने अंदर।
नासमझी इतनी हमारी,
हैं कहते ख़ुदा हर जगह पे है।
फिर कैसे दूर मन्दिर में बड़ा ख़ुदा,
पास के मंदिर छोटा है।
दूर के ढोल सुहावने होते,
ये हम सब जानते हैं।
बाहर के खड़ताल बजाते रहते,
भीतर सन्नाटा रखते हैं।
कैसे मिलेगा हमें ख़ुदा,
कोई जान नां पाया है।
जिसने भी पा लिया ख़ुदा,
नां लौट जहां में आया है।
बना मुर्ख जो बताते हैं,
रास्ता हमें पाने का ख़ुदा।
हैरत होती है वासल देवेन्द्र को,
क्या उन्होंने है पा लिया ख़ुदा।
मत उलझो बातों में इनकी,
कहता है वासल देवेन्द्र।
करते हैं हम कोशिश अपनी,
ढूंढने का भीतर अपने ख़ुदा।
भाव होता है बस अंदर,
बाहर बस दिखावा है।
नहीं माप सकता कोई,
कितनी मां के अंदर ममता है।
छोटा बड़ा जो भी है,
ख़ुदा रहता बस अपने अंदर।
कहां ढूंढोगे तुम ख़ुदा,
क्या हाथ बजा पायें खड़ताल।
जो बची नां रुह तुम्हारे अंदर
जब भाव बचा नां कोई भी अंदर।
दौड़ो दौड़ो मन्दिर दौड़ो,
दौड़ो गिरिजाघर, गुरुद्वारे भी।
भीतर अपने नहीं मिला तो
ख़ुदा मिलेगा कहीं नहीं।।
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Really God is in every heart. Realize it.
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Thank you
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Well Said Dear Vasal, GOD IS IN YOUR HEART
WELL DEFINED MANDIR- MAN KE ANDAR
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Thank you
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Absolutely marvellous. Real fact brought out beautifully
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