SOLDIERS – सैनिक
WRITTEN BY वासल देवेन्द्र।… D K VASAL,
DEDICATED TO SOLDIERS.
SOLDIERS– सैनिक
वो सो गये कफ़न ओढ़ के,
हम सो गए मुंह मोड़ के,
थे लाडले वो भी, अपने परिवार के,
जो चले गये, सब छोड़ के।
वो बन बन के शव , हमें झंझोड़ते रहे,
हम शव हों जैसे, ऐसे सोते रहे।
देख सुबह अखबारों में, शहादत उनकी,
ले ले कर चुस्कियां, चाय पीते रहे।
पल दो पल में उनको भुलाते रहे,
अपने हर फर्ज़ को हम झुठलाते रहे।
उनकी शहादत को फर्ज़ बतलाते रहे,
उनके बलिदान को, इक खबर बनाते रहे।
ना मिट्टी को अपनी सराहा कभी,
ना वीरौं को अपने दुलारा कभी।
फुला करके सीना, झूठ कहते रहे,
है वतन ये हमारा, चिल्लाते रहे।
हर पल हम रंग बदलते रहे,
गिरगिट भी हमसे शर्माते रहे।
हम सुरक्षा से अपनी, धबराते रहे,
वो सीने पे गोली , खाते रहे।
वो शवों के ढेर, बनते गये,
हम ऊंचा घरों को, करते गये।
परिवार उनके सिसकियां भरते गये,
हम ठहाकों में, सब कुछ भुलाते गये।
क्या आती नही हमको लज्जा शर्म ???
अगर हां , तो खाते हैं मिलकर कसम,
मनाने से पहले, कोई भी त्योहार,
करेंगे नमन, उन शहीदों को हम।
है सबसे बड़ा, ये ही शगुन,
हो जाये आंख , हमारी भी नम।
कहता है वासल देवेन्द्र
इतना तो कर लें कम से कम,
पत्थर नहीं इन्सान है हम।
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