यहां ख़ुदा भी घबराते हैं।…. WRITTEN BY वासल देवेन्द्र। …D.K.VASAL.
यहां ख़ुदा भी घबराते हैं।
ए नादान ज़रा सम्भल कर चल,
ये इन्सानों की बस्ती है।
रंग रूप बदल देते हैं ये,
यहां ख़ुदा भी आने से डरते हैं।
हैरान है वासल देवेन्द्र बहुत,
ये दिखाते ख़ुदा को साथ हथियार।
ये ख़ुदा को भी समझते कमज़ोर,
ये कहां उस से घबराते हैं।
जो पलक झपका, हिला दे धरती,
पल भर में, गिरा दे आसमान।
क्या उसे करना है बतलाओ,
उठा कर ये, धातू हथियार।
कभी कभी तो लगता मुझको,
मिथ्या है इन्सानी विचार।
मिथ्या है कल्पना हमारी,
जो देखें ख़ुदा हथियारों के साथ।
रोम रोम में जिसके बस्ते,
हजारों धरती हज़ारों आकाश।
जिसके बादल की बूंदें,
दे मोती में सीप हज़ार।
बिजली कड़े बरसे आग,
हवा आंधी उड़ा दे सारे बाग।
क्या करेगा वो ईश्वर,
उठाकर ये धातू हथियार।
झूठी है कल्पना हमारी,
और छोटी है हमारी सोच।
ख़ुदा की वैसे रच देते मूरत,
जैसी छोटी हमारी सोच।
क्या यही भाव बचा है हम में,
देखें ख़ुदा हथियारों के साथ।
उस करुणा निधि ख़ुदा को भी,
हम देखें हों भयभीत के भाव।
माता दुर्गा दिखे हथियारों के साथ,
बिना धनुष और बिना बाण,
नां दिखते कहीं भगवान राम।
शंकर भोले भी रखते त्रिशूल
बिना गद्दा नां कहीं हनुमान।
हैरत होती है वासल देवेन्द्र को,
कैसे किसने किया विचार।
सपने में भी नां देखी होगी सूरत,
फिर कैसे रची ख़ुदा की मूरत।
झूठे तुम हो कलाकार,
झूठा दिया तुमने आकार।
मां होती ममता की मूरत,
फिर क्यों नां देखी वो उसकी सूरत।
सब मिल मूर्ख इन्सानों नें
बस शमशीर (तलवार) दिखा दी उसके हाथ।
कौन भगवान राम से दयालु,
कौन और पावन पवित्र।
उठाया धनुष उठाया बाण,
करने को राक्षस संहार,
मूर्ख इन्सानों नें रच दी,
मूरत राम की संग धनुष और बाण ।
नाम का भोला काम का भोला,
करणा ही करुणा वो जब भी बोला
देकर सबको अमृत उसने,
ज़हर को अपने कंठ में घोला।
फिर भी ये मूर्ख इन्सान,
उस भोले को त्रिशूल संग दिखलाते हैं।
कैसी कब ये कर दे रचना,
ख़ुदा भी समझ नां पाते है।
जऱा सम्भल कर चल नादान,
ये इन्सानों की बस्ती है।
रंग रूप बदल देते हैं ये
यहां ख़ुदा भी आने से घबराते हैं।
****
बहुत सुंदर |
LikeLike
Thank you
LikeLike