अमावस की रात में चांद चाहते हो। Written by वासल देवेन्द्र।…D.K. Vasal.
ख़ुदा भी चाहते हो,
जहां भी चाहते हो।
बड़े नां समझ हो,
अमावस की रात में,
चांद चाहते हो।
ख़ुदा जो मिल गया,
तो ख़ुद ख़ुद नां रहोगे।
जो ख़ुद को खो दिया,
तो क्या जहां में तुम लोगे।
इश्क जहां से करोगे,
तो ख़ुदा नां मिलेगा।
इश्क ख़ुदा से करोगे,
तो जहां नां बचेगा।
ख़ुदा दिलरुबा है तब तक,
जब तक मिला नहीं।
जो मिल गया इक बार,
तो वो दिलरुबा नहीं।
चलाती है हमको,
जहां में हर वो चीज़।
जो रहती है हम में,
पर दिखती कभी नही।
रुह हो हमारी,
यां हो हमारा ख़ुदा।
हम जानते हैं सब को,
पर मानते नहीं।
जो मानते हम ख़ुदा,
बसा हर एक रुह में।
तो दिल किसी का कभी
हम दुखाते नही।
ढोंगी हैं हम सब,
पाखण्ड से भरे।
दुआ भी किसी को,
दिल से देते नही।
नाम लेते हैं ख़ुदा का,
बस ज़ुबान से।
करते हैं फिर शिकायत,
कि वो दिल की सुनता नहीं।
जो भी देता है वो हमें,
कम ही लगता है।
अपने सिवा इस जहां में
हमें कोई दिखता नहीं।
मूर्ख हैं हम सब,
कबूतर की तरहां।
कर लेता है जो आंख बंद,
बिल्ली को देख कर।
जैसे बिल्ली भी उसको,
देख पाती नही।
झूठ बोलते हैं हर पल,
ये सोचकर।
जैसे सच को और कोई,
जानता नहीं।
कहता है वासल देवेन्द्र,
इसीलिए ये सच।
रुह हो हमारी,
यां हो हमारा ख़ुदा।
हम जानते हैं सब को,
पर मानते नहीं।
हम चाहते हैं ख़ुदा,
और जहां भी चाहते हैं।
बड़े नां समझ हैं,
अमावस की रात में,
चांद चाहते हैं।
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वाह, बहुत सुंदर |
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Thank you
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