दस्तक।
दस्तक। Written by वासल देवेन्द्र….D.K.VASAL
दस्तक।
इतने मसरुफ़ (busy )नां रहो,
कि ख़ुद ख़ुद से नां मिल सको।
इतने मगरूर ( घमंडी )भी नां रहो,
कि दिल की दस्तक, ( knock)
नां सुन सको।
झांका करो ख़ुद में भी,
कभी कभी।
ज़ंग लग जाते हैं,
बंद किवाड़ों को भी।
इक सांसों का सिलसिला,
ही नहीं है बस ज़िन्दगी।
कुछ जीयो ख़ुद के लिए,
कुछ करो ख़ुदा कि बंदगी। (Prayer)
बस अपने को पहचानो,
दीवानगी में जीयो।
हो सके जितना,
ख़ुदा की बंदगी में जीयो।
माला की बीड़ीयो से,
नहीं बंधा है ख़ुदा।
ज़ुबान की हलचल से भी,
नहीं मिलेगा ख़ुदा।
गरीब की झोपड़ी में,
शायद रहता है वो।
करुणा के आंसुओं से ही ,
बस मिलेगा ख़ुदा।
दीवानगी में रहो,
मीरां की तरहां।
इंतजार करो,
शबरी की तरहां।
करुणा हो दधीचि (compassionate king) की तरहां
ख़ुदा ख़ुद आ जायेगा,
महबूबा की तरहां।
खुद से ही बना है,
ख़ुदा मेरा।
फिर भी अजनबी सा है
उससे रिश्ता मेरा।
है राज़ एक ख़ुदा,
ये जानते हैं सब।
रहता तो है कहीं,
ये भी मानते हैं हम।
भाग नहीं सकते उससे,
चाह कर भी हम।
फिर क्यों नां लग जायें,
उसकी बंदगी में हम।
चुरा लो ख़ुद से ख़ुद को,
ख़ुदा के लिए।
वक्त कम बचा है अब,
बंदगी के लिए।
ज़िंदा रहेंगे तब तक,
जब तक है सांस चले।
ज़िन्दगी मिलेगी तब,
जब हमको ख़ुदा मिले।
ज़िन्दगी के तजुर्बे से,
कहता है वासल देवेन्द्र।
नहीं मिलेगा ख़ुदा,
ढूंढने से कभी।
ख़ुदा मिलेगा उसको,
जिसे चुन लेगा,
ख़ुद ख़ुदा।
इतने मसरुफ़ नां रहो
की ख़ुद ख़ुद से नां मिल सको
इतने मगरूर भी नां रहो
की दिल की दस्तक नां सुन सको।
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Excellent poem
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Thank you.
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