नां मुड़ कर देख मुझे , ए ज़िन्दगी।
Written by वासल देवेन्द्र। D.K.Vasal
नां मुड़ कर देख मुझे,
ए ज़िन्दगी,
फिर मोहब्बत हो जायेगी।
इश्क का ये असूल है,
मुड़ कर जो देखा,
तो मोहब्बत कहलायेगी।।
गुज़र रही है मेरी,
कुछ यादों के सहारे,
नां दे दखल तूं अब,
नां दे झूठी दिलासा।
उम्र नही है मेरी,
जो चलाता रहूं ये सिलसिला।।
यादें भी जो बची हैं,
सुनहरी नहीं हैं वो।
नां उकसा मुझे तूं अब,
तुझे मेरी जवानी का वास्ता।।
जी लेने दे मुझे चैन से,
नां करा याद वो,
गुज़री हुई रंगीनियां।
बेरंग हो चुकी हैं अब,
वो रंगों से भरी मेरी दुनिया।।
जितना सुलझाना चाहता हूं,
उतनी ही उलझ रही है।
ये ज़िन्दगी नां जाने,
किस मोड़ से गुज़र रही है।।
बहुत अंजान है ये रास्ता,
बहुत कम मुसाफिर चले हैं यहां।
नां कोई रहनुमा (guide ) मेरा,
नां हमसफ़र है कोई यहां।
मुड़ कर देखना,
हो जैसे गुनाह।
हर गुज़रे लम्हे की,
आंख है नम।
ए जिंदगी नां पुकार मुझे,
तुझे मेरी जवानी की कसम।
है जो बचा,
एक हमसफ़र मेरा,
है मेरी तरहां मजबूर वो।
रोता है जो,
रख सर कंघे पे मेरे,
क्या संभालेगा मुझे वो।
ज़िंदगी,
तूझसे शिकायत नहीं है,
वासल देवेन्द्र को।
बहुत दिया तूने,
शायद बहुतों से ज़्यादा।
ग़म भी दिया ज़्यादा,
दर्द भी औरों से ज्यादा।
मना लूंगा तुझे, समझा लूंगा तुझे।
अभी तो ख़फा हूं, ख़फा रहने दे मुझे।
नां मुड़ कर देख मुझे,
ए ज़िन्दगी,
फिर मोहब्बत हो जायेगी।
इश्क का ये असूल है,
मुड़ कर जो देखा,
तो मोहब्बत कहलायेगी।
*****
बहुत सुंदर।
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Than you
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