नीयत, नज़र और विचार। Written by वासल देवेन्द्र । D.K.Vasal
नीयत नज़र और विचार।
सिर्फ नीयत,
नज़र और विचार,
गंदा होता है।
वर्ना जिस्म तो,
बहन का भी,
वैसा ही होता है।
किसी भी उम्र में,
सो जाओ साथ मां के,
मां, मां ही रहेगी,
बेटा – बेटा ही रहेगा।
पर हर पराई औरत पे,
विचार गंदा ही होता है।
नज़र साफ़ हो,
तो हर चीज़,
साफ दिखती है।
वर्ना सूरज की रोशनी भी
धुंधली दिखती है।
नीयत साफ़ हो,
तो ख़ुदा है हर जगह।
वर्ना मन्दिर में भी,
सिर्फ मूरत ही दिखती है।
विचार अच्छा हो,
तो वचन अच्छा होता है।
वर्ना गालियों में भी,
शब्दों का प्रयोग होता है।
नज़र साफ़ हो,
तो हर अमीर में,
एक गरीब दिखता है।
वर्ना गरीब में भी,
कहां गरीब दिखता है।
नीयत साफ़ हो,
तो झूठ में भी,
एक छिपा सच दिखता है।
वर्ना हर सच में भी,
कुछ झूठ ही दिखता है।
विचार अच्छा हो,
तो आचरण अच्छा होता है।
वर्ना व्यवहार तो,
धोखेब़ाज़ का भी
अच्छा होता है
नीयत अच्छी हो,
तो कारोबार में,
लाभ दिखता है।
वर्ना दिमाग में तो,
लालच का कारोबार ही रहता।
है कहना वासल देवेन्द्र का,
नियत, नज़र और विचार,
हमारी जिंदगी का वो हिस्सा है।
जिससे जुड़ा,
जिंदगी का हर किस्सा है।
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For me this poem written by you is best in all the poems written by you. Yes best creation
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Thank you Bhargav ji.
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