वक्त के हाथ नहीं होते।.. Written by वासल देवेन्द्र….D.K. Vasal.
वक्त के हाथ नहीं होते,
पर तमाचा भारी होता है।
वो फर्क नही करता किसी में,
कोई सोया है यां जागा है।
कब किसी को मार दे तमाचा,
कोई जान नही पाता है।
वक्त के हाथ नही होते,
पर तमाचा भारी होता है।
मैंने भी खाया वो तमाचा,
होश उड़ा के रख दिए।
ज़िंदा हूं यां मरा हूं मैं,
ये भी समझ नां पाया मैं।
ये वक्त वक्त की बात है,
मैंने भी सुना ये सब।
ऐसा भी होता है वक्त,
कभी सोच नां पाया मैं।
वक्त खुद मुक्त है वक्त से,
पर सबको पकड़ कर रखता है।
कब किसी का छोड़ दे दामन,
कोई समझ नहीं पाया है।
युक्ति से चलता है वो,
देख सृष्टि को चारों ओर।
मारता है तमाचा वो ही,
मुक्ति भी देता है वो।
किस को क्या कब देगा वो,
कोई जान नां पाया है।
दबे पांव आता है वो,
चुपके से छा जाता है।
सन्नाटे की गली से आकर,
शोर छोड़ कर जाता है।
कुछ ज़ख़्म ऐसे भी होते हैं,
जो हमेशां ताज़ा रहते हैं।
वक्त के पास भी हर र्मज़ के
दवा दारु कहां होते हैं।
कहता है वासल देवेन्द्र,
नां करो भरोसा वक्त पर,
धोखा ये भी देता है।
वक्त वक्त की बात है,
हर पल सुनाई देता है।
अजीब ‘श’ है ये वक्त भी,
कभी धावों पे मरहम लगाता।
कभी ख़ुरेद पुराने ज़ख्मों को
फिर से हरा कर जाता है।
ज़ुबान नही होती उसकी,
पर संदेशा फिर भी देता है।
सन्नाटे की गली से आकर,
शोर छोड़ कर जाता है।
वक्त के हाथ नहीं होते,
पर तमाचा भारी होता है।
वो फर्क नहीं करता किसी में,
कोई सोया है यां जागा है।
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हकीकत से रु ब रु कराता सुंदर कविता |
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Thank you
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